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बदायूँ शहर टिकट तय करेगा दो दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य,सपा के ‘साइलेंट एक्शन’ के पीछे क्या रणनीति? न उम्मीदवारों की सूची-न सीट शेयरिंग की सूचना,विपक्षी पार्टियों में हुई बेचैनी,,

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण के नामांकन की प्रक्रिया चल रही है. बीजेपी ने 107 उम्मीदवारों की अपनी पहली लिस्ट सार्वजनिक रूप से जारी कर दी है और सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे का भी सोमवार को ऐलान कर देगी. बसपा ने भी पहले चरण की सीटों के लिए कैंडिडेट के नामों का ऐलान कर दिया है तो कांग्रेस 125 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी कर चुकी है. वहीं, सपा ने सार्वजनिक रूप से कोई सूची अभी तक जारी नहीं की है, बल्कि प्रत्याशियों को सिंबल के लिए जरूर फॉर्म ए और बी दे रही है.सपा के प्रत्याशियों की टिकट सूची का केवल सपाइयों को ही इंतजार नहीं हैं इनसे ज्यादा इंतजार भाजपा, बसपा और कांग्रेसियों को है। खासकर भाजपा के जो प्रत्याशी मैदान में हैं, वे भी सपा की सूची का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, ताकि उसी के हिसाब से रणनीति बनायी जाये।

इधर बदायूँ शहर सीट सपा की गले की फांस बन गई है, यह सीट दो दिग्गजों के लिये करो मरो जैसी हो गई है,एक तरफ आज़म खान के चहेते पूर्व विधायक आविद रज़ा किसी भी कीमत पर टिकट चाह रहे है वहीं दूसरी ओर अखिलेश के परिवारी बदायूँ के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव उनका अंदुरुनी विरोध कर किसी भी कीमत पर आविद को टिकट न मिले अपनी पूरी ताकत झोंक चुके हैं,

बता दें कि बदायूं सदर सीट से सपा के पूर्व विधायक रहे आबिद रज़ा को आज़म खान का करीबी माना जाता है। यूपी में सपा सरकार होने के दौरान साल 2016 में आबिद रजा ने बदायूं के सांसद धर्मेंद्र यादव पर अवैध खनन और गोकशी कराने का आरोप लगाया था, जिसके बाद आबिद रजा को पार्टी से निकाल दिया गया था। लेकिन आज़म खान से करीबी के चलते न केवल आबिद रज़ा की सपा में वापसी हुई बल्कि उन्हें 2017 में बदायूं विधानसभा सीट से सपा का प्रत्याशी भी बनाया गया। बदायूँ में आबिद रज़ा ने मुसलमानों की समस्याओं को लेकर मशवराती काउंसिल की मीटिंग की थी, जिसमें आज़म खान सहित देशभर के करीब 100 मुस्लिम नेता शामिल हुए थे। उस मीटिंग को भी सपा की खिलाफत के रूप में देखा जा रहा था।

इधर धर्मेंद्र यादव ने कल बदायूँ के तमाम अल्पसंख्यक नेताओं को एक साथ अखिलेश यादव से मिलाकर यह साफ सन्देश दिया है कि आविद को टिकट न दिए जाने की स्थिति में भी पार्टी को अल्पसंख्यक वोटों की किसी भी तरह का नुकसान की सम्भावना नही है।सपा के लिये बदायूँ की सीट केवल विधायक की सीट नहीं है दो परिवारों की नाक का सवाल बन चुका है जहां एक ओर आविद रजा अपने ब्रह्मास्त्र आज़म खान के सहारे पूरी उम्मीद से मैदान में डटे हैं,बही धर्मेंद्र यादव के लिये उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्न है, यह तो निश्चित है अगर आविद रजा का टिकट फ़ाइनल होता है तो आने वाले समय मे धर्मेंद्र यादव को बदायूँ लोकसभा क्षेत्र छोड़कर नया क्षेत्र तलाशना पड़ सकता है।यह तो एक दो दिन में तय हो जायेगा कि कौन बदायूँ शहर से सपा का प्रत्याशी कौन होगा ,इसी के साथ यह भी तय हो जाएगा कि बदायूँ की सरजमीं पर सपा की राजनीति का सिरमौर कौन होगा।

बदायूँ के पूर्व सांसद सलीम इकवाल शेरवानी भी अपने बेटे शाद शेरवानी के लिये इस बार टिकट की उम्मीद लगाए बैठे हैं,उनके लिये शेखूपुर सीट के दरवाजे हिमान्शु यादव के टिकट के साथ बन्द हो चुके हैं,अब जनकी आखिरी उम्मीद भी बदायूँ शहर सीट बची है।लेकिन बदायूँ के अल्पसंख्यक नेताओं ने धर्मेंद्र यादव से साफ कह दिया है कि किसी बाहरी व्यक्ति को उन पर थोपा न जाये ऐसे में शेरवानी को बदायूँ का दरवाजा भी बंद होता नजर आ रहा है,

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा अपने कैंडिडेटों के नामों का सार्वजनिक ऐलान करने के बजाय खामोशी से उन्हें सिंबल के लिए फॉर्म ए और बी दे रही है ताकि वो नामांकन कर सकें. ये एक सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है

सपा ने इस बार के चुनाव में न तो अपने सहयोगी दलों के साथ किसी तरह का सीट बंटवारे का सार्वजनिक रूप से ऐलान किया है और न ही कैंडिडेट के नामों की कोई लिस्ट जारी की है. सपा के सहयोगी दल आरएलडी ने जरूर अभी तक 36 सीटों पर कैंडिडेट के नाम का ऐलान किया है, जिसमें 10 सीट पर सपा प्रत्याशी के नाम भी शामिल थे. हालांकि, इसके चलते कई सीटों पर सपा के सहयोगी दलों के साथ समीकरण भी गड़बड़ा रहे हैं. मथुरा की माठ सीट पर सपा और आरएलडी दोनों ने ही अपने-अपने नेता को चुनाव सिंबल दे रखा है.

सपा की रणनीति सपा की रणनीति है कि पार्टी में जिन्हें टिकट नहीं मिल रहा है, वो किसी तरह से दूसरे दल से जाकर चुनाव लड़ने की स्थिति में न रहें. इसीलिए सपा आखिर वक्त में कैंडिडेट को बुलाकर फॉर्म ए और बी दे रही है. सपा से जिन्हें टिकट मिलना है, उन्हें अखिलेश यादव ने बता दिया है कि वह चुनाव की तैयारी करें. वो टिकट के लिए लखनऊ में डेरा न जमाएं बल्कि क्षेत्र में रहें और उनके पास नामांकन से पहले फॉर्म ए और बी पहुंच जाएगा.

सपा सहयोगी दलों के साथ सीट पर तालमेल

सपा ने जिस तरह से सार्वजनिक रूप से कैंडिडेट के नाम का ऐलान न करने की जो रणनीति बनाई है, उससे जरिए यह भी मकसद है कि सपा के टिकटों पर किसी तरह का जातीय विश्वलेषण न हो सके. यही वजह है कि एक साथ नामों का ऐलान करने के बजाय एक-एक और दो-दो कैंडिडेट को फॉर्म एक और बी दिए जा रहे हैं. ऐसे में चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेटों को हरी झंडी मिल चुकी है, वो अपने-अपने क्षेत्रों में चुनाव प्रचार में जुटे हैं.

दरअसल, इस बार के विधानसभा चुनाव में दूसरे दलों से नेताओं का समाजवादी पार्टी में जबरदस्त हुजूम आया है. सपा की हालत एक अनार और सौ बीमार वाली हो गई है. सपा के टिकट के लिए एक-एक सीट पर कम से कम दस बड़े नेताओं ने दावेदारी कर रखी है. ऐसे में सभी नेताओं को उम्मीद है कि पार्टी उन्हें टिकट देगी, लेकिन सपा को नए और पुराने नेताओं में बैलेंस बनाना पड़ रहा है.

कई दिग्गज नेताओं का सपा ने काटा टिकट

इमरान मसदू, मसूद अख्तर, कादिर राणा, गुड्डू पंडित, चौधरी विरेंद्र सिंह, हाजी शाहिद अखलाक जैसे नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टी छोड़कर सपा का दामन जरूर थामा, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाया. आखिर वक्त में अब इन सारे नेताओं के पास कोई सियासी विकल्प नहीं बचा, जिससे वो चुनावी मैदान में उतरकर किस्मत आजमा सकें.

रामगोपाल यादव दे रहे हैं सिंबल फॉर्म

सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के जारिए कैंडिडेट को फॉर्म ए और बी जारी किए जा रहे हैं ताकि प्रत्याशी नामांकन कर सकें. सहारनपुर जिले की सीटों पर भी सपा ने जिन प्रत्याशियों के नाम पर मुहर लगाई है, उनके नाम का भी सार्वजनिक रूप से ऐलान नहीं किया गया बल्कि उन्हें भी फॉर्म ए और बी दिए गए हैं. उदाहारण के तौर पर बिसौली से आशुतोष मौर्य, शेखूपुर से हिमाँशु यादव, सहसवान से ब्रजेश यादव, सहारनपुर देहात से सपा ने आशु मलिक को , प्रत्याशी बनाया है तो बेहट सीट से उमर अली खान को उम्मदीवार बनाया गया गया है.

वहीं, सपा ने इस बार के चुनाव में तमाम छोटे दलों के साथ गठबंधन किया है. माना जा रहा है कि करीब एक दर्जन छोटे दल के साथ तालमेल बनाया है, लेकिन गठबंधन में किस दल को कितनी सीटें मिली हैं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसकी कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं की है बल्कि सहयोगी दलों के साथ बैठकर जरूर उनके साथ सीट के तालमेल बैठाने का काम किया है. इतना ही नहीं, सपा ने कई सहयोगी दलों से सिर्फ उनके कैंडिडेट के नाम मांगे हैं, जो सपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे. इसमें महान दल, जनवादी पार्टी, अपना दल और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम हैं.

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