अयोध्या।अवधपुरी मम पुरी सुहावनि, उत्तर दिशि बह सरयू पावनि…मानस की चौपाई में सरयू नदी को अयोध्या की पहचान का प्रमुख प्रतीक बताया गया है। ऐसे ही सरयू के तट पर बसने वाले तीर्थ पुरोहितों की भी अपनी अलग ही पहचान है। या तो यजमान को पता है या फिर तीर्थ पुरोहितों को। पीढ़ियों से चले आ रहे निशान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते हैं।
किसी के दो बैल, किसी का दो गिलास पानी, गुब्बारे का झंडा तो किसी का गुलाब के फूल का झंडा…सरयू तट पर पंडे व पुरोहितों की पहचान यही है। यजमानों को पता है कि उन्हें किस निशान वाले पुरोहित के पास जाना है। कच्चे व पक्के घाट मिलाकर लगभग 500 से अधिक ऐसे निशान वाले पंडे व पुरोहित हैं।
गुप्तार घाट, स्वर्ग द्वार, लक्ष्मण घाट, राज घाट, राम घाट, जानकी घाट और नया घाट पर चौकियों पर लटके हुए निशान अपनी पहचान बता देते हैं। लक्ष्मणघाट से लेकर संत तुलसीदास घाट तक तीर्थ पुरोहित श्रद्धालुओं को पूजन-अर्चन, गोदान कराकर अपना जीवन यापन करते हैं।
आसानी से पहचान लेते हैं यजमान
तीर्थ पुरोहित राममिलन पांडेय का कहना है कि तीन पीढ़ियों से दो गुब्बारे का झंडा उनका निशान है। साल में पड़ने वाली 15 पूर्णिमा और तेरस पर स्नान के लिए यजमान आते हैं, तो पूरा इंतजाम किया जाता है। निशान से यजमान अपने पुरोहित को पहचान जाते हैं और हमारी चौकी पर ही आते हैं। अनिल पांडेय का कहना है कि गया में पिंडदान, काशी में रुद्राभिषेक व जलाभिषेक का महत्व है, उसी तरह से अयोध्या में गोदान का महत्व होता है