उत्तराखंड के गठन के लिए हुए आंदोलन के बाद देहरादून में पहली बार एक ख़ास मक़सद को लेकर महारैली हुई जिसमें किसी भी राजनीतिक पार्टी की रैलियों से ज़्यादा लोग जुटे.
ख़ास बात यह है कि सत्तारूढ़ बीजेपी को छोड़कर लगभग सभी दल और सामाजिक संगठनों के लोग इसमें शामिल हुए.सख़्त भू-कानून और मूल निवास की मांग को लेकर देहरादून में हज़ारों की संख्या में लोग जुटे लेकिन इससे एक सवाल भी खड़ा हो गया है कि क्या उत्तराखंड में पहाड़ी बनाम मैदानी द्वंद्व शुरू हो जाएगा?
मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति ने सशक्त भू-कानून और मूल निवास लागू करने के साथ ही इसकी कट ऑफ़ डेट 26 जनवरी, 1950 रखे जाने की मांग को लेकर रविवार को महारैली का आह्वान किया था.रैली को उत्तराखंड क्रांति दल, आम आदमी पार्टी के साथ ही कई छोटी पार्टियों ने समर्थन देने का एलान पहले ही कर दिया था.कांग्रेस ने एक दिन पहले शनिवार की शाम को रैली को समर्थन देने का एलान किया.
इसके बाद देर रात राज्य सरकार ने एक उच्चाधिकार समिति को (जिसका गठन एक दिन पहले ही किया गया था) मूल निवास पर भी सिफ़ारिशें देने को कह दिया.यह समिति मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में मानकों का निर्धारण करने के संबंध में सरकार को सिफ़ारिशें देगी.