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Chandrayaan-3 Vikram Lander Instrument; ISRO NASA | Location Marker Lunar South Pole | चंद्रयान-3 का लैंडर चंद्रमा के साउथ पोल पर मार्कर बना: 20 ग्राम का लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे दशकों तक काम करेगा; मून मिशन में मददगार होगा

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बेंगलुरु12 मिनट पहले

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इसरो ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया था, जो 23 अगस्त 2023 को चांद के साउथ पोल पर लैंड हुआ था। - Dainik Bhaskar

इसरो ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया था, जो 23 अगस्त 2023 को चांद के साउथ पोल पर लैंड हुआ था।

चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर के पर लगे एक उपकरण ने चंद्रमा के साउथ पोल के पास लोकेशन मार्कर के रूप में काम करना शुरू कर दिया है। विक्रम लैंडर पर लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे (LRA) लगाया गया था, जिसने चंद्रमा पर एक फिडुशियल पॉइंट (रिफरेंस के लिए सटीक रूप मार्कर) के रूप में काम करना शुरू कर दिया है। यह जानकारी भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने शुक्रवार (19 जनवरी) को दी।

इसरो का चंद्रयान-3 मिशन 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया गया था। इसमें तीन हिस्से थे- प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर। प्रोपल्शन मॉड्यूल को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया था। वहीं लैंडर और रोवर ने 23 अगस्त को चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंडिंग की थी।

नासा के मिशन को मिला था सिग्नल
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लूनर रिकोनाइसेंस ऑर्बिटर (LRO) ने 12 दिसंबर 2023 को लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे के जरिए रिफलेक्ट किए गए सिग्नल्स का पता लगाया था। LRO ने इसका इस्तेमाल करके ही लेजर रेंज हासिल की। एलआरओ पर लूनर ऑर्बिटर लेजर अल्टीमीटर (LOLA) का उपयोग किया। यह ऑब्जर्वेशन लूनर नाइट्स के दौरान हुआ, जब LRO चंद्रयान-3 की ओर बढ़ रहा था।

चंद्रयान-3 पर लगा लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे, यही लेजर किरणों के जरिए सिग्नल भेजता है।

चंद्रयान-3 पर लगा लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे, यही लेजर किरणों के जरिए सिग्नल भेजता है।

दरअसल, 14 जुलाई को लॉन्चिंग के पहले ही चंद्रयान-3 पर नासा का LRA विक्रम लैंडर पर लगाया गया था। 20 ग्राम वजन वाला यह लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे अर्धगोलाकार है। इसमें 8 कोने हैं। यह एरे किसी भी परिक्रमा करने वाले अंतरिक्ष यान को विभिन्न दिशाओं से लेजर के जरिए सिग्नल भेजता है।

हालांकि चांद को एक्सप्लोर करने के लिए शुरू हुए मिशन के बाद से ही चंद्रमा पर कई LRA तैनात किए गए हैं। चंद्रयान -3 पर लगा LRA मिनिएचर वर्जन है। जो वर्तमान में दक्षिणी ध्रुव के पास उपलब्ध एकमात्र LRA है।

LRA से क्या फायदा होगा…
इसरो का कहना है कि चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर पर नासा का LRA लंबे समय तक जियोडेटिक स्टेशन और चंद्रमा की सतह पर एक स्थान मार्कर के रूप में काम करेगा। जिससे मौजूदा और भविष्य में चांद पर जाने वाले मून मिशन को फायदा मिलेगा।

LRA जो मेजरमेंट्स भेजेगा उसके जरिए अंतरिक्ष यान के सटीक निर्धारण में मदद तो मिलेगी ही, साथ ही इनके जरिए चंद्रमा की गतिशीलता, आंतरिक संरचना और गुरुत्वाकर्षण विसंगतियों के बारे में मिलने वाली जानकारी को भी रिफाइन करने में मदद मिलेगी।

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चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल के साथ यूनीक एक्सपेरिमेंट

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन, यानी ISRO ने हॉप एक्सपेरिमेंट के बाद एक और यूनीक एक्सपेरिमेंट में चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल को चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी की कक्षा में ट्रांसफर किया। ये एक्सपेरिमेंट इसरो के चंद्रयान-4 मिशन के लिहाज से काफी अहम है। चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा का सॉइल सैंपल पृथ्वी पर लाया जाएगा। पढ़ें पूरी खबर…

विक्रम लैंडर ने उड़ाई थी 2 टन धूल​​​​​​​

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने शुक्रवार 27 अक्टूबर को बताया था कि चंद्रयान से विक्रम लैंडर जब चांद की सतह पर उतरा, तो उसने करीब 2.06 टन लूनर एपिरेगोलिथ यानी चंद्रमा की धूल को उड़ाया था। इससे वहां एक शानदार इजेक्टा हेलो यानी चमकदार आभामंडल बन गया। लैंडिंग पॉइंट (शिव शक्ति बिंदु) पर उठा यह धूल का गुबार करीब 108.4 वर्ग मीटर के हिस्से में फैल गया था। पढ़ें पूरी खबर…

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