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बदायूं: 2008 में किशोर द्वारा की गई हत्या के मामले में आया फैसला, दो दोषी किशोरों को डेढ़-डेढ़ वर्ष का कारावास और 10-10 हजार रुपये जुर्माना

बदायूं। जनपद में वर्ष 2008 में घटित एक हत्या के मामले में किशोर न्याय बोर्ड ने 16 वर्षों के लंबे न्यायिक प्रक्रिया के बाद शुक्रवार को ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। हत्या के इस मामले में विचाराधीन दो किशोरों को दोषी पाते हुए उन्हें डेढ़-डेढ़ वर्ष के कारावास और 10-10 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई गई है।

यह निर्णय किशोर न्याय बोर्ड की प्रधान मजिस्ट्रेट श्रीमती रोहिणी उपाध्याय तथा न्यायिक सदस्य श्री अरविंद गुप्ता की संयुक्त पीठ ने सुनाया। दोनों ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों व तर्कों के आधार पर एकमत होकर दोषियों को सजा सुनाई। यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 404 (चोरी छिपे किसी मृत व्यक्ति की संपत्ति में हेराफेरी) और 411 (चोरी की संपत्ति को छिपाने या रखने) के अंतर्गत दर्ज किया गया था।

हत्या के शिकार किशोर के परिजनों को मिली आंशिक न्याय की तसल्ली

इस फैसले से मृतक किशोर के परिजनों को वर्षों बाद न्यायिक राहत मिली है। घटना के समय दोनों दोषी आरोपी भी किशोरावस्था में थे, जिसके चलते मामला किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष विचाराधीन था। बोर्ड ने सजा के साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि दोनों दोषी किशोरों को बदायूं जिला कारागार में सुधारात्मक शिक्षा, कौशल विकास, परामर्श, व्यवहार सुधार व मानसिक सहयोग उपलब्ध कराया जाए, ताकि वे समाज की मुख्यधारा में वापस लौट सकें।

मानवाधिकार और पुनर्वास को भी ध्यान में रखा गया

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सजा का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि अपराधियों को सुधारना और समाजोपयोगी बनाना भी है। इसीलिए दोनों दोषियों को जेल के दौरान विशेष पुनर्वास कार्यक्रमों से भी जोड़े जाने का आदेश दिया गया है।

अभियोजन पक्ष की भूमिका सराहनीय

इस फैसले में अभियोजन अधिकारी द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्य और मजबूत पक्ष-विपक्ष के तर्कों की भी सराहना की गई। उनके परिश्रम से ही इतने वर्षों बाद न्याय प्रक्रिया अपने निष्कर्ष तक पहुँच सकी।

न्यायिक प्रक्रिया में मिली प्रगति, लेकिन किशोर अपराधों को लेकर चिंता बरकरार
यह मामला एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि समाज में किशोरों को अपराध की ओर ले जाने वाले कारणों पर गहन मंथन की आवश्यकता है। साथ ही, किशोर न्याय व्यवस्था की प्रभावशीलता और उसमें सुधार की दिशा में निरंतर प्रयासों की दरकार भी है।

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