
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर केंद्र सरकार आज सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करेगी। कोर्ट ने 19 मार्च को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को 3 हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था।
CAA के खिलाफ 237 याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में से 20 में कानून पर रोक लगाने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। इसमें CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा था, हम केंद्र सरकार को स्टे पर जवाब देने के लिए 2 अप्रैल तक का समय देते हैं। उस पर 8 अप्रैल तक याचिकाकर्ता अपनी बात रख सकें। इस तरह हम 9 अप्रैल को अगली सुनवाई करेंगे।
केंद्र ने CAA लागू होने का नोटिफिकेशन 11 मार्च को जारी किया था। इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी। इसके खिलाफ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, असम कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद, डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने याचिका लगाई है।


CAA के तहत नागरिकता पाने के लिए क्या करना होगा?
सरकार ने पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन बनाया है। आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था। उन्हें ये साबित करना होगा कि वे पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश के निवासी हैं। इसके लिए वहां के पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, मार्कशीट या वहां की सरकार से जारी पहचान का कोई प्रमाण पत्र पेश करना होगा।
नागरिकता के आवेदनों पर एक समिति फैसला लेगी। इस समित में जनगणना निदेशक, आईबी, फॉरेन रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस, पोस्ट ऑफिस और राज्य सूचना अधिकारी शामिल होंगे। सबसे पहले आवेदन जिला कमेटी के पास जाएगा। फिर उसे एंपावर्ड कमेटी को भेजा जाएगा।
जनवरी 2019 में संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 31 दिसंबर 2014 तक भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31,313 गैर-मुस्लिमों ने भारत में शरण ली है। यानी 31,313 लोग इस कानून के जरिए नागरिकता हासिल करने के योग्य होंगे।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के हिंदू शरणार्थीी भी नागरिकता के पात्र हो जाएंगे। इनकी आबादी 3-4 करोड़ बताई जाती है। पश्चिम बंगाल की 10 लोकसभा सीटों पर इनका प्रभाव है।

असम में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के स्टू़डेंट्स CAA के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए।
CAA का विरोध कौन कर रहा है और क्यों?
2019 मे CAA पारित हुआ जिसके बाद से इसका विरोध शुरू हो गया। जामिया मिल्लिया इस्लामिया से शाहीन बाग तक, लखनऊ से असम तक; हिंसक विरोध प्रदर्शन में कई लोगों को जान भी गंवानी पड़ी। विरोध करने वालों में दो तरह के लोग थे…
पहलाः असम समेत देश के पूर्वात्तर राज्यों के लोग। वहां के अधिकांश लोगों को ये आशंका है कि इस कानून के लागू होने के बाद उनके इलाके में प्रवासियों की तादाद बढ़ जाएगी। जिससे पूर्वोत्तर राज्यों के कल्चर और भाषाई विविधता को नुकसान पहुंचेगा।
दूसरा: भारत के अन्य क्षेत्र के लोग CAA का विरोध इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इसमें मुस्लिम शरणार्थियों को शामिल नही किया गया है। इस कानून में तीनों देश से आए सभी 6 धर्म के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है जबकि मुस्लिम धर्म के लोगों को इससे बाहर रखा गया।
विपक्ष का आरोप है कि इसमें खास तौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है। उनका तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है।
CAA में मुस्लिमों को क्यों नहीं शामिल किया गया?
बीजेपी ने कहा कि केंद्र सरकार CAA के माध्यम से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रभावित अल्पसंख्यक समुदायों को राहत देना चाहती है। मुस्लिम समुदाय इन देशों में अल्पसंख्यक नहीं, बल्कि बहुसंख्यक है। यही कारण है कि उन्हें CAA में शामिल नहीं किया गया।
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