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Zee Article | Supreme Court Bloomberg Zee Entertainment Case Update | आर्टिकल जांचें बिना हटाया जाना मौत की सजा के बराबर: SC ने कहा- ये फ्रीडम ऑफ स्पीच के लिए खतरा, निचली अदालत के फैसले को पलटा

नई दिल्ली7 मिनट पहले

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CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। - Dainik Bhaskar

CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

सुप्रीम कोर्ट ने एक मीडिया हाउस में पब्लिश आर्टिकल को लेकर 22 मार्च को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा- कोई आर्टिकल कितना नुकसानदायक है, यह जाने बिना उस पर रोक लगाना मौत की सजा देने के बराबर है।

कोर्ट ने कहा- ये फ्रीडम ऑफ स्पीच के लिए गंभीर खतरा है। ऐसा करने से गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए आर्टिकल पर लगी रोक हटा दी।

यह मामला ब्लूमबर्ग में जी एंटरटेनमेंट के खिलाफ छपे एक आर्टिकल को लेकर है। जिस पर निचली अदालत और फिर हाईकोर्ट ने आर्टिकल को हटाने का आदेश दिया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।

CJI चंद्रचूड की तीन सदस्यीय बेंच ने फैसला सुनाया
भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा- किसी भी मीडिया आर्टिकल के पब्लिकेशंस पर रोक लगाने के आदेशों में अदालतों को सावधानी बरतनी चाहिए, खासकर जब यह साबित होना बाकी है कि ऐसे आर्टिकल का कंटेंट दुर्भावनापूर्ण या गलत तो नहीं है।

अब जानिए क्या है पूरा मामला…
21 फरवरी को ब्लूमबर्ग ने जी एंटरटेनमेंट के खिलाफ एक आर्टिकल पब्लिश किया। ब्लूमबर्ग ने अपने आर्टिकल में कहा कि सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने जी एंटरटेनमेंट लिमिटेड के अकाउंटिंग में 241 मिलियन डॉलर को लेकर कुछ गड़बड़ पाया।

हालांकि सेबी की तरफ से इस संबंध में कोई आदेश भी पारित नहीं किया गया था। आर्टिकल सामने आने के बाद जी कंपनी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। जी ने कहा- ब्लूमबर्ग ने SEBI के ऑर्डर के बिना गलत और फर्जी रिपोर्ट छाप दी।

23 दिन में फैसला आया…

21 फरवरी को ब्लूमबर्ग ने इस हेडलाइन के साथ आर्टिकल पब्लिश किया था, जिसको लेकर विवाद हुआ।

21 फरवरी को ब्लूमबर्ग ने इस हेडलाइन के साथ आर्टिकल पब्लिश किया था, जिसको लेकर विवाद हुआ।

28 फरवरी: डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने आर्टिकल हटाने का निर्देश दिया
जी ने आर्टिकल को लेकर ब्लूमबर्ग और उसके पत्रकारों, एंटो एंटनी, सैकत दास और प्रीति सिंह के खिलाफ दिल्ली डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर किया। 28 फरवरी को एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज हरजोत सिंह भल्ला ने जी एंटरटेनमेंट लिमिटेड के पक्ष में फैसला सुनाया। ब्लूमबर्ग से कहा गया कि वह एक हफ्ते के भीतर डिफेमेटरी आर्टिकल को हटाए।

14 मार्च: दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा
ब्लूमबर्ग ने आर्टिकल हटाने के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की। 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा और ब्लूमबर्ग को आर्टिकल हटाने का निर्देश दिया।

22 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल पर लगी रोक हटा दी
दिल्ली हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिलने के बाद ब्लूमबर्ग ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल पर लगी रोक हटा दी। साथ ही कहा- ट्रायल कोर्ट से फैसला सुनाने में गलती हुई, जिसे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए कहा- सुनवाई शुरू होने से पहले किसी भी आर्टिकल पर रोक लगा देना बहस का गला घोंटने जैसा है। दूसरे शब्दों में कहें तो अदालतों को असाधारण मामलों को छोड़कर एक पक्ष को सुने ही रोक का आदेश नहीं देना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट बोला-सरकार की हर आलोचना अपराध नहीं: नागरिक को केंद्र के किसी भी फैसले का विरोध करने का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने असहमति के अधिकार को बरकरार रखते हुए कहा है कि हर आलोचना अपराध नहीं होती है। अगर हर आलोचना या असहमति को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा तो लोकतंत्र जीवित नहीं रह पाएगा। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर कुछ टिप्पणियां करने के आरोपी के खिलाफ दाखिल केस को खारिज कर दिया। पढ़ें पूरी खबर…

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