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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि बेरोजगार पति भी पत्नी को कानून के तहत भरण-पोषण देने को बाध्य है क्योंकि वह अकुशल श्रमिक के रूप में रोज 350 से 400 रुपये कमा सकता है। यह फैसला हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल ने पारिवारिक न्यायालय उन्नाव के आदेश को चुनौती देने वाली पति की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करके दिया।
पारिवारिक अदालत ने याची को आदेश दिया था कि वह पत्नी को 2000 रुपये मासिक भरण पोषण के रूप में दे। इस मामले में पत्नी ने पति के खिलाफ मारपीट व दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था जब पत्नी अपने ससुराल नहीं लौटी तो पति ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मुकदमा दायर किया, जो लंबित है। इसी बीच पत्नी ने पति से गुजारा भत्ता दिलाने की अर्जी अदालत में दी।
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इस पर न्यायालय ने हर माह 2000 रुपये देने का आदेश दिया। पति ने आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देकर कहा कि पत्नी 28 जनवरी, 2016 से अपने माता-पिता के घर रह रही है। ऐसे में वह पति से भरण पोषण पाने की हकदार नहीं है। पति ने कहा कि वह बेरोजगार है। मारुति वैन चलाता है, जिससे कोई खास आय नहीं होती।
इस पर कोर्ट ने एक नजीर के हवाले से कहा कि अगर यह माना जाय कि पति की कोई आय नहीं है तब भी वह पत्नी को भरण पोषण देने को बाध्य है। पति स्वस्थ व आजीविका कमाने में सक्षम है। अगर वह अकुशल श्रमिक के रूप में भी काम करे तो रोजाना 350 से 400 रुपये कमा सकता है।