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बदायूं में सरकारी धन के गबन मामले में बड़ी राहत: तत्कालीन डीपीआरओ श्रेया मिश्रा पर नहीं मिला साक्ष्य, पुलिस ने केस से नाम हटाया

बदायूं। जनपद बदायूं में बहुचर्चित सरकारी धन गबन प्रकरण में एक बड़ी कानूनी प्रगति सामने आई है। तत्कालीन जिला पंचायत राज अधिकारी (DPRO) श्रेया मिश्रा, जिनका नाम शुरुआती जांच के आधार पर केस में जोड़ा गया था, को अब पुलिस जांच के बाद बड़ी राहत मिली है। जांच में उनके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य न मिलने के चलते पुलिस ने मुकदमे से उनका नाम हटा दिया है।

क्या था पूरा मामला?

यह मामला थाना फैजगंज बेहटा क्षेत्र के ग्राम पिसनहारी का है, जहां ग्राम प्रधान ओमवती और उनके पति ऋषिपाल सिंह यादव पर पंचायती धन के दुरुपयोग का गंभीर आरोप लगा। गांव की पंचायत सदस्य रेनू यादव ने इस संबंध में सीजेएम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

याचिका में कहा गया कि मनरेगा सहित अन्य योजनाओं के तहत श्रमिकों को भुगतान के लिए भेजे गए ₹1,56,550 की धनराशि को प्रधानपति ऋषिपाल ने अपने बैंक खाते में ट्रांसफर करवा लिया, लेकिन श्रमिकों को एक भी रुपया नहीं मिला। जांच समिति की रिपोर्ट में यह बात पुष्ट हुई और मामले को गंभीर वित्तीय अनियमितता माना गया।

किसका-किसका नाम आया था सामने?

प्रारंभिक जांच में प्रधान और उनके पति के अलावा तत्कालीन पंचायत सचिव स्वर्णकेस, और तत्कालीन डीपीआरओ श्रेया मिश्रा की भूमिका को भी संदिग्ध माना गया। रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने इसे संज्ञेय अपराध मानते हुए पुलिस विवेचना के आदेश दिए।

क्या कहती है पुलिस जांच?

करीब चार महीने तक चली गहन जांच के बाद फैजगंज बेहटा थाने के थानाध्यक्ष रमिंद्र कुमार ने बताया कि —

“तत्कालीन डीपीआरओ श्रेया मिश्रा के खिलाफ कोई ऐसा प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं मिला, जिससे उन्हें मामले में दोषी ठहराया जा सके। इसलिए उनका नाम विवेचना से हटा दिया गया है।”

हालांकि, बाकी आरोपियों के खिलाफ जांच अभी भी अंतिम चरण में है और मामले की केस डायरी पर विधिक राय मांगी गई है। इसके बाद ही अभियोग की अंतिम स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।

जनमानस में क्या प्रतिक्रिया?

इस मामले को लेकर स्थानीय प्रशासन, जनप्रतिनिधियों, और ग्रामीणों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी। हालांकि, डीपीआरओ पर लगे आरोपों की कानूनी स्थिति अब स्पष्ट हो चुकी है, जिससे प्रशासनिक साख को आंशिक रूप से राहत मिली है

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