



बदायूं। उत्तर प्रदेश के बदायूं ज़िले में एक बार फिर शराब माफिया की बेरहम हकीकत सामने आई है। देसी शराब सेल्समैन मुकेश यादव की गोली मारकर की गई हत्या ने न सिर्फ जिले को दहला दिया, बल्कि शराब सिंडीकेट के खौफनाक मंसूबों को भी उजागर कर दिया है।
सिर्फ “10 रुपये का फर्क”, और एक ज़िंदगी खत्म!
मुकेश यादव 75 रुपये में पौवा बेच रहा था, जबकि सिंडीकेट के ठेके 85 रुपये वसूल रहे थे। यही 10 रुपये का फर्क शराब माफिया को नागवार गुजरा और उन्होंने 10 लाख की सुपारी देकर उसकी हत्या करवा दी—ऐसा आरोप है परिजनों का।
बदायूं का ‘शराब सिंडीकेट’— पैसा, पावर और प्रशासन की मिलीभगत का कॉकटेल!
बदायूं में शराब के धंधे पर एक संगठित सिंडीकेट का कब्जा है, जो न सिर्फ ठेके खरीदता है बल्कि प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के लिए हत्या तक करने से नहीं चूकता।
परिवार के आरोप और स्थानीय सूत्रों के अनुसार, अगर कोई दूसरा ठेका सिंडीकेट के दायरे से बाहर निकलता है, तो ये पहले धनबल से उसे खरीदने का प्रयास करते हैं। अगर नहीं माने, तो आसपास के गांवों में सस्ती, नंबर दो की शराब बिकवाकर उसकी बिक्री गिरा दी जाती है। अंततः दुकानदार टूटकर ठेका सिंडीकेट को बेच देता है।
शिकायत करो तो प्रशासन आंखें मूंद लेता है
परिजनों का दावा है कि इस काम में आबकारी विभाग और पुलिस की शह रहती है। जब कोई व्यापारी इस मनमानी की शिकायत करता है, तो उसे दबा दिया जाता है। ठेका कब्जे में आते ही MRP से ऊपर रेट पर शराब बेची जाती है, साथ ही ठेका खुलने और बंद होने के समय का पालन नहीं होता शटर के निचे से यह खेल सुबह तड़के और देर रात्रि तक खुलेआम देखा जा सकता है,और इस संबंध मे कोई बोलता है तो उसका हश्र मुकेश यादव जैसा होता है।
बिल्सी के अवधेश सोनी की हत्या मे भी शराब सिंडीकेट ने कराई थी, लेकिन…
कई साल पहले इस पेशे मे उभरते हुए बिल्सी के व्यापारी अवधेश सोनी की भी हत्या कर दी गई थी। तब भी परिजनों ने शराब सिंडीकेट को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन आज तक किसी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई।सभी आरोपियों को अदालत और पुलिस से क्लीनचिट भी मिल चुकी है अब तक उस केस में पुलिस ने हत्या का मोटिव व हत्यारों को ढूड़ने मे नाकाम रही है, जिससे सवाल उठता है—क्या अब फिर वही कहानी दोहराई जाएगी?
मुकेश की हत्या का घटनाक्रम
दुगरैया गांव में स्थित ठेके पर मुकेश यादव बैठा था, तभी बाइक पर सवार दो युवकों ने पहले शराब खरीदी और फिर गोली मार दी।
लूट की बात खारिज करते हुए परिजनों ने इसे पूरी तरह से प्लान की गई हत्या बताया है। एसएसपी ब्रजेश सिंह ने भी इसे हत्या का मामला माना है, लूट नहीं।
सात बच्चों का सहारा छिना—अब कौन करेगा उनका पालन?
मुकेश यादव के पीछे पत्नी, दो बेटे और पांच बेटियां हैं, सभी 12 वर्ष से छोटे। अब पूरा परिवार बेसहारा हो गया है। तीन भाइयों में मुकेश बीच का था।
राजनीतिक दबाव और पुलिसिया कार्रवाई
घटना की जानकारी मिलते ही सदर विधायक महेश चंद्र गुप्ता अस्पताल पहुंचे और पीड़ित परिवार को न्याय का आश्वासन दिया।
पुलिस ने चार टीमें गठित की हैं—एसओजी, सर्विलांस और लोकल पुलिस मिलकर जांच कर रही हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल:?
क्या इस बार भी बदायूं का सिंडीकेट पैसे और पावर के बल पर बच निकलेगा?
क्या योगी की पुलिस इस बार वास्तविक हत्यारों तक पहुंच पाएगी, या फिर मुकेश यादव की मौत भी अवधेश सोनी जैसे मामले की तरह फाइलों में दबा दी जाएगी?