बदायूं, खेड़ा बुजुर्ग। गरीब मजदूर मोहन लाल ने इंसानियत का फ़र्ज़ निभाते हुए अपने गांव के काशीराम आवासीय कॉलोनी में तीन दिनों से घायल पड़े एक सांड की सूचना ग्राम प्रधान को दी, लेकिन इसके बदले उसे जो मिला, वह बेहद निराशाजनक और चौंकाने वाला था। ग्राम प्रधान ने सूचना पाकर पशु चिकित्सक को बुलवाया, जिन्होंने सांड का उपचार किया। उपचार के बाद, चिकित्सक ने दवाइयों का पर्चा तैयार कर मोहन लाल के हाथ में थमा दिया और कहा कि अब यह दवाइयां खरीदकर सांड को खिलाते रहना।
मोहन लाल, जो कि एक साधारण मजदूर हैं और जिनका सांड से कोई संबंध नहीं है, पर अब सवाल यह उठता है कि अगर कोई गरीब व्यक्ति मानवता के नाते किसी घायल पशु की सूचना पशु पालन विभाग को देता है, तो क्या उसे ही दवाइयों का खर्च उठाना पड़ेगा? क्या यह जिम्मेदारी गरीब मजदूरों पर थोपना उचित है?
पशु पालन विभाग की घोर लापरवाही
यह घटना पशु पालन विभाग की गंभीर लापरवाही को उजागर करती है। विभाग की यह जिम्मेदारी बनती है कि घायल पशुओं की देखभाल की जाए और उनके इलाज का खर्च सरकार उठाए। लेकिन यहां मोहन लाल को दवाइयों का पर्चा पकड़ाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया गया। यह न केवल गरीब मजदूर के साथ अन्याय है, बल्कि यह भी दिखाता है कि शासन के आदेशों के बावजूद गौ वंश सड़क पर क्यों मर रहे हैं और इन्हें गौशालाओं में जगह क्यों नहीं दी जा रही है।
ग्राम प्रधान की भूमिका पर भी उठे सवाल
इस घटना में ग्राम प्रधान की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। प्रधान के पास सांड के उपचार के लिए सभी संसाधन होते हुए भी उन्होंने मोहन लाल को ही दवाइयां खरीदने के लिए कहा। यह एक जिम्मेदार पदाधिकारी का कर्तव्य होता है कि वह जरूरतमंदों की सहायता करे, लेकिन इस मामले में प्रधान ने अपनी जिम्मेदारी निभाने में कोताही बरती।
जनता में आक्रोश
इस घटना से गांव के लोगों में भी गहरी नाराजगी है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर यही हाल रहा, तो भविष्य में कोई भी घायल पशुओं की सूचना देने से कतराएगा। यह न केवल पशु पालन विभाग की लापरवाही है, बल्कि शासन की योजनाओं पर भी सवाल खड़े करता है। गौशालाओं का निर्माण और उनका संचालन क्यों नहीं हो पा रहा है, यह एक बड़ा प्रश्न बन गया है।
आखिर कब मिलेगा समाधान?
इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या शासन और प्रशासन की नीतियां वास्तव में जमीनी स्तर पर लागू हो रही हैं? घायल पशुओं की देखभाल और उनके इलाज के लिए क्या यह जिम्मेदारी गरीब मजदूरों पर डालना उचित है? शासन को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और ऐसी लापरवाहियों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए।