बिल्सी:- नगर के मोहल्ला संख्या दो स्थित श्री 1008 चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर में आज को जैन संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज की विगत दिनों समाधि हो जाने के बाद आज विनयांजलि सभा का आयोजन किया गया कार्यक्रम की अध्यक्षता समाज के मंत्री अनिल कुमार जैन ने की।

उन्होंने महाराज के जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि मुनि जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा गाँव में हुआ था। दीक्षा के पहले भी उनका नाम विद्यासागर ही था। उन्होंने 22 साल की उम्र में घर-परिवार छोड़ दी थी। इसके बाद 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर में अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा ली थी। दीक्षा के बाद उन्होंने कठोर तपस्या की।मुनि जी दिन भर में सिर्फ एक बार एक अंजुली पानी पीते थे। वे खाने में सीमित मात्रा में सादी दाल और रोटी लेते थे। उन्होंने आजीवन नमक, चीनी, फल, हरी सब्जियाँ, दूध, दही, सूखे मेव, अंग्रेजी दवाई, तेल, चटाई का त्याग किया। इसके अलावा उन्होंने थूकने का भी त्याग रखा।

उन्होंने आजीवन सांसारिक एवं भौतिक पदार्थों का त्याग कर दिया। वे हर मौसम में बिना चादर, गद्दे, तकिए के शख्त तख्त पर सिर्फ एक करवट में शयन करते थे।मुनि जी ने पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया। उनकी तपस्या को देखते हुए श्रीज्ञानसागर जी महाराज ने 22 नवम्बर 1972 को उन्हें आचार्य पद सौंपा था। आचार्य विद्यासागर के पिता का नाम श्री मल्लप्पा था, जो बाद में संन्यास लेकर मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता का नाम श्रीमंती था, जो आगे चलकर संन्यास ले लीं और आर्यिका समयमति बनीं। मुनि उत्कृष्ट सागर जी दिवंगत विद्यासागर जी के बड़े भाई हैं। जैन समाज के अध्यक्ष मृगांक कुमार जैन ने बताया कि जैन धर्म के प्रमुख गुरु जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज ने शनिवार की रात करीब 2:30 बजे छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़-राजनंदगाँव में अपना देह त्याग दिया। रविवार (18 फरवरी 2024) को उनका अंतिम संस्कार पूरा हो गया। उन्होंने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में आचार्य पद का त्याग करने के बाद 3 दिन का उपवास और मौन धारण कर लिया था।

इस मौके पर निर्भय कुमार जैन ,निखिल जैन,कवि नरेंद्र गरल, मयंक जैन ,नीरेश जैन, संतोष जैन, दिव्या जैन, स्वीटी जैन ,चुन्नी जैन ,रीता जैन ,नीलू जैन,अभिषेक जैन ,आदि लोग मौजूद रहे

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