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अयोध्या राम मंदिर राम दरबार में हर कोई होगा लेकिन तीन खास दोस्त छूट जाएंगे – अमर उजाला हिंदी समाचार लाइव


अयोध्या राम मंदिर राम दरबार में हर कोई होगा लेकिन तीन खास दोस्त छूट जाएंगे

राम मंदिर
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


भगवान राम के सखा वानरराज सुग्रीव, राक्षसराज विभीषण, महावीर हनुमान, रीक्षराज जामवंत और शिल्पकला के विशेषज्ञ नल-नील की कथा तो सब जानते हैं। राम ने सीता मुक्ति के लिए रावण से हुए युद्ध में अपने इन सखाओं के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है, लेकिन कलयुग में राम के तीन सखा ऐसे हुए, जिन्होंने भगवान को उनके दिव्य-भव्य मंदिर में स्थापित करने की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई।

कोर्ट-कचहरी में रामलला के हक की पैरवी की। उनके पक्ष में गवाही दी। मगर अब जब दिव्य मंदिर बन रहा है तो रामलला को विराजते देखने के लिए इनमें से कोई मौजूद नहीं होगा। आइए जानते हैं इनके बारे में…

पहले रामसखा : देवकी नंदन अग्रवाल

विवादित स्थल को रामलला का जन्मस्थान साबित करने के लिए कोर्ट-कचहरी में लंबी लड़ाई चली। पक्ष-विपक्ष से पांच मुकदमे हुए। इनमें गोपाल सिंह विशारद, महंत रामचंद्र दास परमहंस, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड व रामलला विराजमान की ओर से दाखिल वाद शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर से जुड़े फैसले का अध्ययन कर किताब लिख रहे वरिष्ठ पत्रकार डॉ. चंद्र गोपाल पांडेय बताते हैं कि पांचवां मुकदमा रामलला विराजमान की ओर से एक जुलाई, 1989 को दाखिल हुआ।

इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला विराजमान और स्थान जन्मभूमि की ओर से नेक्स्ट फ्रेंड के रूप में दायर िकया था। वे स्वयं ही वादी संख्या तीन थे। वे स्वामित्व से जुड़े पहलू पर इस वाद को टर्निंग प्वाइंट के रूप में देखते हैं। इसी वाद में रामलला ने विवादित जगह पर अपने जन्म की बात करते हुए उस स्थान को अपना होने का दावा किया था। अग्रवाल का अप्रैल 2002 में निधन हो गया।

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