बदायूं विधानसभा सीट से साल 1989 और 1991 में लगातार दो बार बीजेपी के टिकट पर कृष्ण स्वरूप बैश्य विधायक का चुनाव जीते थे इसके बाद से 2017 तक कोई भी निवर्तमान विधायक लगातार दूसरी बार चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंच सका।यूँ तो बदायूँ की 6 विधानसभा सीट में से एक है बदायूं विधानसभा क्षेत्र, बदायूं से यूपी की राजधानी लखनऊ 291 किलोमीटर की दूरी पर है,भारत की राजधानी दिल्ली की दूरी बदायूँ से 246 किलोमीटर है बदायूं के पिछड़े पन की बात करें तो इसी से अंदाज़ लगा सकते हैं कि ब्रॉडगेज इलेक्ट्रिक रेल लाइन होने के बाबजूद भी बदायूँ रेल यातायात से न तो देश की राजधानी से ओर न ही प्रदेश की राजधानी से जुड़ा है किसी भी राजधानी तक यातायात के लिए केवल सड़क ही विकल्प है,बदायूँ का इतिहास के बारे में तो कहा जाता है कि 905 ईसवीं में अहीर राजा बुद्ध ने इस नगर को बसाया था उस समय इसका नाम ‘बुद्ध मऊ’ बताया जाता है,राजा बुद्ध के उत्तराधिकारियों ने यहां 11वीं सदी तक राज्य किया इसके बाद राजा महीपाल के मंत्री सूर्यध्वज ने इस नगर को वेदों की शिक्षा का केंद्र बनाया, जिसके चलते इसका नाम बेदामऊ के नाम से प्रसिद्ध हुआ,इसके प्रमाण के रूप में बदायूँ में आज भी सूरजकुंड का होना माना जाता है इसी सूरजकुंड के पास प्राचीन काल की गुरुकुल है जहां आज भी वेदों की शिक्षा दी जाती है। बदायूँ नाम के बारे में बताया जाता है कि मुसलमानों के आक्रमण के समय बेदामऊ का नाम बिगाड़ कर पहले बदाऊं फिर बदायूँ पड़ा। वर्तमान में बदायूं जिला रुहेलखंड मण्डल क्षेत्र में आता है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि में बदायूँ
बदायूं विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो 1952 में यह सीट बदायूं नॉर्थ विधानसभा के नाम से अस्तित्व में आई, पहले विधानसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर निहालुद्दीन यहां के विधायक बने और 1957 के विधानसभा चुनाव में इस सीट का नाम बदायूं हो गया बदायूं विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक के रूप में टीकाराम चुने गए। बदायूं विधानसभा सीट से 1962 में कांग्रेस 1967 में रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया ने जीत दर्ज की 1969 में भारतीय जनसंघ और 1974, में इंडियन नेशनल कोंग्रेस, 1977 में जनता पार्टी से कृष्ण स्वरूप वैश्य और फिर 1980 में फिर से कांग्रेस जीती 1980 में कांग्रेस से श्री कृष्ण गोयल 1985 में कांग्रेस की प्रमिला भदवार मेहरा चुनाव जीती और यह जीत कांग्रेस उम्मीदवार की इस विधानसभा सीट पर अंतिम जीत थी।
बदायूं विधानसभा सीट से 1989 और 1991 के चुनाव में बीजेपी के कृष्ण स्वरूप वैश्य लगातार दो बार चुनाव जीते लेकिन इसके बाद आजतक कोई भी विधायक लगातार दूसरी बार यहां से विधानसभा नहीं पहुंच सका है 1991 से 2017 तक हर चुनाव में बदायूं की जनता ने अपना विधायक बदला है 1993 में समाजवादी पार्टी के जोगिंदर सिंह अनेजा 1996 में बीजेपी से प्रेमस्वरूप पाठक ,साल 2002 में बहुजन समाज पार्टी के विमल कृष्ण अग्रवाल हुए जो आगे चलकर सपा में शामिल हो गए 2007 में बीजेपी के महेश चंद गुप्ता और 2012 में सपा के आविद रजा,2017 में फिर से महेश गुप्ता ने जीत दर्ज की,
आज़ादी के बाद इस विधानसभा सीट से कांग्रेस को चार बार , भाजपा (जनसंघ,जनता पार्टी) को 6 बार सपा को 2 बार, बसपा को 1 बार जीत मिली है। बदायूं विधानसभा सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने महेश चंद्र गुप्ता को टिकट दिया बीजेपी के महेश चंद गुप्ता ने सपा के आबिद रजा को 16467 वोट के अंतर से हरा दिया बसपा के भूपेंद्र सिंह को इस विधानसभा सीट पर तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था।
सामाजिक ताना-बाना
बदायूँ विधानसभा के सामाजिक समीकरण की बात करें तो यह मुस्लिम बाहुल्य सीट है विधानसभा क्षेत्र में जाटव मौर्य शाक्य यादव ठाकुर,ब्राह्मण, लोधी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं वहीं बाल्मीकि धोबी खटीक कायस्थ साहू राठौर कुर्मी कश्यप जाति के मतदाता भी अच्छी तादात में है
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
विधायक के रिपोर्ट कार्ड की बात करें तो महेश गुप्ता प्रदेश सरकार में नगर विकास मंत्री हैं। महेश चंद गुप्ता विकास के दावे तो करते हैं लेकिन उनके विभाग की ओर से नगर या क्षेत्र में कोई भी उल्लेखनीय कार्य इलाके में दिखाई नहीं देते, लोग ऑफ द रिकॉर्ड चुनाव जीतकर दोबारा से क्षेत्र में लौट कर नहीं देखना,फोन न उठाने व छोटे मोटे काम के भी कई कई चक्कर लगाने,कोठी पर चाटुकारों के जमाबाड़े के चलते आम जनता से न मिल पाना भी बहुत बड़ा विरोध का कारण है,लेकिन भाजपा कैडर वाला मतदाता भारी विरोध के बाबजूद भी वोट देने की बात करता दिखा लेकिन शहर में अतिक्रमण के नाम पर जिनके दुकान और मकान के नुकसान हुए हैं जिसको भाजपा का परम्परागत वोटर भी माना जाता है उनमे भी भारी आक्रोश है,शहर की प्रमुख टूटी सड़कें बरसात के दौरान जलमग्न बदायूँ के दर्शन अंडर ग्राउंड बिजली की लाइनों के कारण हुई मौतों के बाबजूद भी समस्या का समाधान नहीं दिखना व पीड़ित परिवार को भी सहायता न मिलने से जनता में भारी रोष दिखाई दिया।
कल 14 फरवरी को बदायूँ का मतदाता अपना फैसला ईवीएम में कैद कर देगा जो रिजल्ट के रूप में 10 मार्च को हम सबके सामने होगें और उसीदिन इस मिथक का भी फैसला सामने होगा जो 1991 से आजतक बदस्तूर चला आ रहा है,कि कोई भी निवर्तमान विधायक लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीत कर विधान सभा नहीं पहुंच सका है।